Tuesday, April 14, 2009

पगडण्डी

यह सर्पीली से पगडण्डी,
गवाह है पलायन की।
इन पर चल कर,
गए तो बहुत,
किंतु।
कोई, लौट कर नही आया,
खली होते गाँवोंकी,
गवाह ये पगडण्डी।
विरहनी से ये ,
लौटने का इंतज़ार करती,
हर जाने वाले का,
किंतु।
जाने वाला तो इन्हे भूल गया,
ये पगडण्डी इनकी यादो को,
गले से लगाये,
सिमटी सी,
इनकी प्रतीक्षा में,
हो रही निरंतर क्षीण।
कोई तो ऐसा होगा,
जिससे आएगी इनकी याद,
देगा जाकर इनके,
हृदय पे दस्तक.