हौंसला
ज़िन्दगी क्या है?
कभी धूप कभी छावं,
कभी सुख कभी दुःख।
कभी मेल कभी विछोह,
कभी खुशी कभी गम।
सरल नही है जीवन की राहें,
कठिन भी नही है जीवन की राहें।
जैसे तुम चाहो इन्हे बनाओ,
तुम झुका सकती हो पहाड़ को,
रुख मोड़ सकती हो दरिया का।
हौंसला तुम ख़ुद का बढाओ,
राहें ख़ुद बनेंगी,
मंजिले कदम चूमेगी.
Wednesday, September 9, 2009
Tuesday, September 8, 2009
यादें
ऐसी यादें जो होती,
कुछ खट्टी कुछ मीठी
परत दर परत
चल चित्र सी,
खुलती परत दर परत
मन की यह उड़ान
बीते पलों को संजोये,
खुशियों को समेटे,
एकाकीपन का साथी,
ख़ुद की एक दुनिया,
जो सिर्फ़ अपनी है।
जिस पर सिर्फ़ और सिर्फ़
मेरा ही हो हक़,
एक बंद मुट्ठी की तरह।
मन के कोने में हर पल बंद,
मेरे एकाकी पलो में,
चुपके से झांकती यादें,
जो सिर्फ़ मेरी निजी हैं.
Sunday, August 30, 2009
जीवन
परिवर्तन हुआ तो है,
मगर कहाँ?
दिखा ही नही!
एक सी दिनचर्या में,
कोल्हू के बैल सा,
एक ही दिशा में, घुमते जाना।
निरंतर,
पृथ्वी की तरह,
अपनी ही धुरी पर करते रहना
निरंतर घूरण।
इस मायाजाल में,
अटक कर,
क्या कुछ पाया?
क्या कुछ खोया?
पता भी न चल पाया!
थक गए जब कदम,
बोझिल हुआ तन-मन,
तब महसूस किया,
ये कैसा परिवर्तन?
इसकी कहाँ थी प्रतीक्षा?
फ़िर भी सत्य का तो,
करना ही है साक्षात्कार
द्वारा-
सरोज
परिवर्तन हुआ तो है,
मगर कहाँ?
दिखा ही नही!
एक सी दिनचर्या में,
कोल्हू के बैल सा,
एक ही दिशा में, घुमते जाना।
निरंतर,
पृथ्वी की तरह,
अपनी ही धुरी पर करते रहना
निरंतर घूरण।
इस मायाजाल में,
अटक कर,
क्या कुछ पाया?
क्या कुछ खोया?
पता भी न चल पाया!
थक गए जब कदम,
बोझिल हुआ तन-मन,
तब महसूस किया,
ये कैसा परिवर्तन?
इसकी कहाँ थी प्रतीक्षा?
फ़िर भी सत्य का तो,
करना ही है साक्षात्कार
द्वारा-
सरोज
Saturday, August 29, 2009
Tuesday, August 25, 2009
जीवन मूल्यांकन
पीछे मुड कर देखूं,
करूँ समय का अवलोकन,
क्या पाया क्या खोया?
यह मूल्यांकन कर न सकू,
बचपन की याद जो हैं शेष,
वही है पूँजी जीवन की विशेष।
यौवन आ कर सरक गया,
कुछ उपहार दे गया।
हृदय के जो हैं टुकड़े,
वे भी बिछड़ जायेंगे।
अपने-अपने नीड़ बना,
फुर्र हो जायेंगे।
पुनःजीवन पथ के दो राही,
यादो की गठरी लिए,
छुट जायेंगे अकेले।
क्या पता?
उनमे भी कौन राही कहाँ तक साथ चले,
फ़िर एक अकेला जाने कब तक,
खट्टी मीठी यादो को सीने से लगाये,
जिंदगी को ढोता रहेगा?
मौत के इंतज़ार में।
सरोज...
पीछे मुड कर देखूं,
करूँ समय का अवलोकन,
क्या पाया क्या खोया?
यह मूल्यांकन कर न सकू,
बचपन की याद जो हैं शेष,
वही है पूँजी जीवन की विशेष।
यौवन आ कर सरक गया,
कुछ उपहार दे गया।
हृदय के जो हैं टुकड़े,
वे भी बिछड़ जायेंगे।
अपने-अपने नीड़ बना,
फुर्र हो जायेंगे।
पुनःजीवन पथ के दो राही,
यादो की गठरी लिए,
छुट जायेंगे अकेले।
क्या पता?
उनमे भी कौन राही कहाँ तक साथ चले,
फ़िर एक अकेला जाने कब तक,
खट्टी मीठी यादो को सीने से लगाये,
जिंदगी को ढोता रहेगा?
मौत के इंतज़ार में।
सरोज...
Sunday, August 23, 2009
बेटी ...
बेटी
सृजन का प्रतीक
बेटियाँ।
ममता और प्यार की प्रतीकबेटियाँ।
बांटती हैं स्नेह सबको,
होती हैं शुभाकांक्षी,
फ़िर क्योँ होती हैं
तिरस्कृत?
ये कैसी है विडंबना!
जननी ही जिसकी दुश्मन,
जन्मते ही लम्बी साँस खींच,
दो बूँद आंसू से करती,
आत्मजा का स्वागत!
जब जननी अपने ही प्रतिरूप का
ऐसा करती स्वागत
फ़िर समाज से कैसी करे अभिलाषा!
अब लाये बदलाव,
बदल दे समाज के ये रिवाज,
हिम्मत दिखाओ लड़कियों को ही वंशबेल बनाये,
जब समान पीड़ा भोगी,
फ़िर भेद क्यों किया?
पूछेगी बेटी ये प्रश्न, दे पाओगे जवाब?
बदल देनी होगी यह रीति,
सृष्टि की जननी का हंस कर करे स्वागत,
नही तो आज की वे दुर्गा या लक्ष्मी,
कल की काली बन जाएगी.
द्वारा-
सरोज
Wednesday, August 12, 2009
बचपन
निश्छल चंचल मेरा बचपन,
कभी का खो गया है!
कुलांचे भरता मेरा मन,
चंचल हिरनी सा पड़ी नदी सा।
लौटा दे कोई , लौटा दे कोई!
न कल की थी चिंता न वर्तमान का भय,
हरदम उछलकूद , हरदम शरारते।
याद आते हैं वे सुनहरे दिन
स्कूल से आना बस्ता फेंकना,
चाय के साथ बासी रोटी खाना,
फिर पनघट की डाल पे कूदना,
पीपल की डाल पर झूलना,
उछल कूद शरारत,
सहेलियो के साथ मिल कर नित नई शरारत करना,
पूंजी है,
मेरे बचपन की, यादो की,
काश,
कोई लौटा देता मेरा बचपन,
कोई लौटा देता मेरा बचपन।
निश्छल चंचल मेरा बचपन,
कभी का खो गया है!
कुलांचे भरता मेरा मन,
चंचल हिरनी सा पड़ी नदी सा।
लौटा दे कोई , लौटा दे कोई!
न कल की थी चिंता न वर्तमान का भय,
हरदम उछलकूद , हरदम शरारते।
याद आते हैं वे सुनहरे दिन
स्कूल से आना बस्ता फेंकना,
चाय के साथ बासी रोटी खाना,
फिर पनघट की डाल पे कूदना,
पीपल की डाल पर झूलना,
उछल कूद शरारत,
सहेलियो के साथ मिल कर नित नई शरारत करना,
पूंजी है,
मेरे बचपन की, यादो की,
काश,
कोई लौटा देता मेरा बचपन,
कोई लौटा देता मेरा बचपन।
Tuesday, August 11, 2009
स्मृति
छहों ऋतुएं बारह महीनें,
लेकर आयेंगे त्योहार,
शहीद जो हो गए हैं,
उन्हें ही करेंगे याद,
सावन में जब आएगी राखी,
बहिन की रहेगी आस बाकी,
जिसकी खोई है कलाई, वो किसे बांधेगी राखी?
सूने दशहरा दीवाली...
दूज का टीका भी खाली,
बड़ा दिन हो या संक्राति,
हो लोहरी या बसंत,
आएगी होली बैशाखी
कसक दिल में रहेगी बाकी...
शहीदों तुम्हे न भूलेंगे,
रास्ता जो तुम दिखा गए,
उस से न हम भटकेंगे....
छहों ऋतुएं बारह महीनें,
लेकर आयेंगे त्योहार,
शहीद जो हो गए हैं,
उन्हें ही करेंगे याद,
सावन में जब आएगी राखी,
बहिन की रहेगी आस बाकी,
जिसकी खोई है कलाई, वो किसे बांधेगी राखी?
सूने दशहरा दीवाली...
दूज का टीका भी खाली,
बड़ा दिन हो या संक्राति,
हो लोहरी या बसंत,
आएगी होली बैशाखी
कसक दिल में रहेगी बाकी...
शहीदों तुम्हे न भूलेंगे,
रास्ता जो तुम दिखा गए,
उस से न हम भटकेंगे....
Friday, May 15, 2009
सपने
छोटे- छोटे सपने
छोटी-छोटी खुशी
पूरी भी हैं अधूरी भी,
अपनी भी हैं पराई भी
जीवन का सफर तो, संध्या का
राही सा ,
थका थका सा रेंग रहा है
फ़िर भी,
मनन की उत्ताल तरंगे,
प्रतीक्षारत हैं,
भोर के प्रकाश की
जीवन की यह
भागदौड़, न ख़त्म होता सफर,
प्रतीक है
निरंतेर परिवर्तन का ,
जागी आँखों के सपने,
हम भी देखें,
जग भी देखे,
परिवर्तन हो ऐसा...
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयः
छोटी-छोटी खुशी
पूरी भी हैं अधूरी भी,
अपनी भी हैं पराई भी
जीवन का सफर तो, संध्या का
राही सा ,
थका थका सा रेंग रहा है
फ़िर भी,
मनन की उत्ताल तरंगे,
प्रतीक्षारत हैं,
भोर के प्रकाश की
जीवन की यह
भागदौड़, न ख़त्म होता सफर,
प्रतीक है
निरंतेर परिवर्तन का ,
जागी आँखों के सपने,
हम भी देखें,
जग भी देखे,
परिवर्तन हो ऐसा...
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयः
Tuesday, April 14, 2009
पगडण्डी
यह सर्पीली से पगडण्डी,
गवाह है पलायन की।
इन पर चल कर,
गए तो बहुत,
किंतु।
कोई, लौट कर नही आया,
खली होते गाँवोंकी,
गवाह ये पगडण्डी।
विरहनी से ये ,
लौटने का इंतज़ार करती,
हर जाने वाले का,
किंतु।
जाने वाला तो इन्हे भूल गया,
ये पगडण्डी इनकी यादो को,
गले से लगाये,
सिमटी सी,
इनकी प्रतीक्षा में,
हो रही निरंतर क्षीण।
कोई तो ऐसा होगा,
जिससे आएगी इनकी याद,
देगा जाकर इनके,
हृदय पे दस्तक.
यह सर्पीली से पगडण्डी,
गवाह है पलायन की।
इन पर चल कर,
गए तो बहुत,
किंतु।
कोई, लौट कर नही आया,
खली होते गाँवोंकी,
गवाह ये पगडण्डी।
विरहनी से ये ,
लौटने का इंतज़ार करती,
हर जाने वाले का,
किंतु।
जाने वाला तो इन्हे भूल गया,
ये पगडण्डी इनकी यादो को,
गले से लगाये,
सिमटी सी,
इनकी प्रतीक्षा में,
हो रही निरंतर क्षीण।
कोई तो ऐसा होगा,
जिससे आएगी इनकी याद,
देगा जाकर इनके,
हृदय पे दस्तक.
Thursday, January 29, 2009
mother......my goddess
यह ब्लॉग मेरी माँ के नाम है, जो दुनिया की सबसे अच्छी माँ है, इसमें मैं उनकी कुछ कवितायें और विचार व्यक्त करुँगी जो उन्होंने अपने अच्छे और बुरे समय में लिखी हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)