Sunday, August 23, 2009

बेटी ...



बेटी

सृजन का प्रतीक
बेटियाँ।
ममता और प्यार की प्रतीक
बेटियाँ।
बांटती हैं स्नेह सबको,
होती हैं शुभाकांक्षी,
फ़िर क्योँ होती हैं
तिरस्कृत?
ये कैसी है विडंबना!
जननी ही जिसकी दुश्मन,
जन्मते ही लम्बी साँस खींच,
दो बूँद आंसू से करती,
आत्मजा का स्वागत!
जब जननी अपने ही प्रतिरूप का
ऐसा करती स्वागत
फ़िर समाज से कैसी करे अभिलाषा!
अब लाये बदलाव,
बदल दे समाज के ये रिवाज,
हिम्मत दिखाओ लड़कियों को ही वंशबेल बनाये,
जब समान पीड़ा भोगी,
फ़िर भेद क्यों किया?
पूछेगी बेटी ये प्रश्न, दे पाओगे जवाब?
बदल देनी होगी यह रीति,
सृष्टि की जननी का हंस कर करे स्वागत,
नही तो आज की वे दुर्गा या लक्ष्मी,
कल की काली बन जाएगी.



द्वारा-
सरोज

3 comments:

  1. beti hi shakti,beti hi laxmi,beti hi annpurna.....phir bhi hai vidambna, bahut sashakt bhawavivyakti

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  2. Kadwa sach... nahi to aaj ki yeh durga - lakshmi, kal ki kaali ban jaayengi.... too good..!

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  3. Ek maa wala hi kaam kiya h vaastav me... kadwe sach ko sundar libaas me lapet k sachha se tawaarruf karaya h...

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