Saturday, August 29, 2009


बसन्त

आया बसंत,
मन में उल्लास,
फूला कचनार,
देख कर खिल उठा बुरांस,
कूजू का झाड़ भी,
हुआ क्या सफ़ेद झक -झक!
आया बसंत,
देखो प्रकृति कैसी इठलाई!
आम लीची की बौर,
देखो हर ठौर,
बन-बन फूली फ्यूंली कैसी!
प्रद्कृति का हो शगुन जैसे,
हर ठूंठ पर देखो,
ये कैसा है यौवन छाया!
देखो, बसंत आया,
मन में उल्लास लाया।




द्वारा-
सरोज

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