जीवन
परिवर्तन हुआ तो है,
मगर कहाँ?
दिखा ही नही!
एक सी दिनचर्या में,
कोल्हू के बैल सा,
एक ही दिशा में, घुमते जाना।
निरंतर,
पृथ्वी की तरह,
अपनी ही धुरी पर करते रहना
निरंतर घूरण।
इस मायाजाल में,
अटक कर,
क्या कुछ पाया?
क्या कुछ खोया?
पता भी न चल पाया!
थक गए जब कदम,
बोझिल हुआ तन-मन,
तब महसूस किया,
ये कैसा परिवर्तन?
इसकी कहाँ थी प्रतीक्षा?
फ़िर भी सत्य का तो,
करना ही है साक्षात्कार
द्वारा-
सरोज
Sunday, August 30, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सत्य का साक्षात्कार - bas yahi jivan hai..!
ReplyDelete